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रहस्यमाई चश्मा भाग - 45

अब जब बहुत दिनों बाद सुयश को तुमने मेरे संरक्षण में भेजा तो मुझे महसूस हुआ कि गुरु द्रोणाचार्य ,परशुराम आदि भारतीय परंपरा का मेरे जीवन का सर्वश्रेष्ठ शिष्य भीष्म अर्जुन तुम और सुयश ही हो यदि जीवन मे मेरे ज्ञान परिश्रम का सर्वोत्तम भविष्य एव वर्तमान है तो तुम और सुयश ।सुयश की शिक्षा तुम्हारी कल्पनाओं के अनुरूप पूर्ण हो चुकी है जब यह तुम्हारे पास जाएगा तुम स्वंय परख लेना और हां सुयश ने कभी यह नही महसूस किया ना ही महसूस होने दिया कि वह कही से भी शारीशरीक दृष्टिकोण से अपंग या विकलांग है,,,

उसने सदैव अपने परिश्रम पुरुषार्थ पराक्रम का परचम लहराकर यही प्रमाणित किया कि वह परमात्मा कि सृष्टि का महत्वपूर्ण प्राणि मानव है तुम्हे सुयश पर अभिमान होगा और तुम्हारे जीवन उद्देश्यो को यह नई ऊंचाई प्रदान करेगा ।प्रोफेसर टीपनिस का पत्र पढ़ते पढ़ते मंगलम चौधरी अपने अतीत में खो गए नवरात्रि का उत्सव सभी लोग नवरात्रि एव विजय दशमी के उत्सव को अपनी अपनी तरह से मनाने में मशगूल थे मंगलम चौधरी शुभा के साथ यशोवर्धन एव सुलोचना कि अनुमति से घूमने फिरने के मकशद से निकले सुलोचना ने मना भी किया लेकिन यशोवर्धन ने सुलोचना को समझाते हुए कहा अरे भाग्यवान दोनों का विवाह तो हमने निश्चित ही कर रखा है और शुभा को जीवन भर सुयश के साथ ही रहना है और यह सत्य मंगलम का परिवार भी जानता है तो फिर तुम क्यो बच्चों की खशियो में खलल डाल रही हो जीने दो स्वच्छंद बच्चों को अपनी जिंदगी सुलोचना बोली आप तो ऐसे ही कहते रहते है,,,,

शुभा अब जवान हो गयी है और मंगलम भी उम्र के इस दौर में दोनों ने नासमझी में कुछ ऐसा वैसा कर दिया तो दुनियां को क्या जबाब दोगे यशोवर्धन बोले चुप रहो भाग्यवान शुभ शुभ बोलो शुभा और मंगलम चौधरी सुबह साथ निकले और दिन भर घूमते फिरते रहे

घूमते घूमते रात्रि हो गयी उस दौर में शहर भी संध्या के बाद आपने अपने घरों में कैद हो जाता था सिर्फ अंग्रेजी हुक्मरानों के हाकिमो के घोड़ो के टॉप सुनाई पड़ते ऐसे में रात्रि हो जाने पर कही आना जाना बहुत सम्भव नही हो पाता किसी तरह से शुभा मंगलम चौधरी के साथ अपने घर पहुंची रात बहुत हो जाने के कारण यशोवर्धन एव सुलोचना ने मंगलम को अपने घर पर ही रोक लिया शुभा अपने कमरे में सोने के लिए चली गयी और मंगलम अतिथि के रूप में अपने कमरे में सब कुछ बहुत सामान्य था ।उस दौर कि बड़ी बड़ी हवेलियों में भी बड़े बड़े सीमेंट के खपड़ैल लगे होते थे सुलोचना प्रतिदिन ब्रह्म बेला में ही नीद से जाग जाती थी,,,,,

जब जब वह जगी कुछ देर बाद ही उन्होंने शुभा के कमरे से तेज तेज सिसकियों कि आवाज सुनी वह भगते हुये पति यशोवर्धन के पास गई और उन्हें जगाया यशोवर्धन और शुभा ने शुभा के कमरे को खुलवाने के लिए बहुत प्रयास किया लेकिन कमरा नही खुला तब तक हवेली में मौजूद सारे सेवक जग गए और शुभा के कमरे के सामने एकत्र हो गए सबके मन मे एक ही प्रश्न था कि आखिर बात क्या है कि शुभा बिटिया दरवाजा नही खोल पा रही है,,,,,

इस बीच मंगलम चौधरीं भी वहां पहुंच चुके थे अंत मे यशोवर्धन के आदेश के बाद हवेलो के कारिंदो ने शुभा के कमरे का दरवाजा तोड़ा सभी जब शुभा के कमरे में दाखिल हुए हतप्रद रह गए सबने देखा काला भयंकर विषधर जिसकी पूंछ तो ऊपर छत पर अटकी थी और मुँह उसका शुभा के पेट और नाभि के मध्य शुभा ज्यो उठने की कोशिश करती विषधर फुंकार मारने लगता वह भयाक्रांत अपने मृत्यु काल को काले विषधर के रूप में देख रही थी,,,,,,

यशोवर्धन एव हवेली के सभी सेवको ने विषधर को मारने की जुगत लगा लगा कर थक हार गए लेकिन सम्भव नही हो पा रहा था दिन चढ़ चुका था हवेली में चारो तरफ अफरा तफरी का वातावरण था यशोवर्धन के घर ऐसी स्थिति को जान शासन प्रशासन का अमला भी विषधर को पकड़ने या मारने कि सारे प्रायास करके तक चुका था सब ने यह मान लिया कि अब शुभा को बचा पाना असंभव है सपेरे आये वह भी अपनी सभी कोशिश करने में लगें हुए थे लेकिन कोई नतीजा नही निकल पा रहा था दूसरे दिन सांध्य हो चुकी थी और निशा के प्रथम चरण का शुभारम्भ हो चुका था,,,,,

तभी हवेली के सामने से गुजरते एक संत को जब पता लगा कि यशोवर्धन जी के यहां कोई विशेष बात है जो उनके यहां भीड़ एकत्र है और लोग विचित्र अविश्वसनीय घटना को देखने आ जा रहे थे संत भीड़ को चीरते हुए सीधे यशोवर्धन और शुभा के पास पहुंचे और बोले क्या बात है बच्चा ईश्वर ने तुम्हे बहुत कुछ दिया है आज वह तुम्हे किस परीक्षा में खड़ा कर दिया है यशोवर्धन ने शुभा के कमरे तक ले जाकर पूरा दृश्य संत को दिखाया मंगलम चौधरी का मन आत्म ग्लालि से स्वंय को कोस रहा था कि उसने शुभा के साथ जाने की जिद्द ही क्यो की उंसे यह समझ ही नही आ रहा था कि दुर्गापूजा के पावन शुभ अवसर पर यह कैसा बखेड़ा खड़ा हो गया है,,,

वह सबसे अलग अपराधबोध से किसी अपशगुन के प्रायश्चित कि कल्पना कि ज्वाला में जल रहा था।संत शुभा के कमरे में बेख़ौफ़ दाखिल हुए और कुछ पल बाद बाहर आकर बोले कोई बड़ी समस्या। नही है और उन्होंने यशोवर्धन एव सुलोचना को आदेशात्मक स्वर में बोले आप दोनों हवेली में एकत्र लोंगो से ससम्मान निवेदन करे कि वो लोग यहां से जाने का कष्ट करें ।संत का आदेश पाते ही यशोवर्धन एव सुलोचना ने हवेली में एकत्र आम सभी से हाथ जोड़कर विनम्रता पूर्वक निवेदन किया कि आप सभी कि संवेदनाओ के लिए हृदय से आभार कृतज्ञता अब आप लोग हमारे परिवार को उनकी नियति पर छोड़ दे जो भी होना होगा होगा ईश्वर का प्रारब्ध मानकर उंसे स्वीकार किया जाएगा,,,,

जारी है

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1 Comments

Gunjan Kamal

16-Aug-2023 12:20 PM

👏👌🙏🏻

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